अगर वो पल मुझे इक बार मिल जाए तो मैं पूछूँ कि ये सौदा मिरे सर में समाया किस लिए तू ने ये दर्द-ए-ला-दवा दिल में जगाया किस लिए तू ने ख़िरद इदराक अक़्ल-ओ-फ़हम सब बेगार हों जैसे फ़रासत दूर-बीनी आगही बेकार हों जैसे हवाले इस्तिआ'रे मशवरे दुश्वार हों जैसे दलाएल फ़लसफ़े मंतिक़ ज़ेहन पर बार हों जैसे बसीरत होशियारी इल्म सब ख़ामोश तस्वीरें न कोई मशवरा अच्छा न दानिश-मंद तदबीरें मुसलसल बे-कली दीवानगी है ख़ुद-फ़रामोशी फ़क़त इक बे-ख़ुदी आठों पहर पुर-कैफ़ मद-होशी नज़र हर शक्ल में ढूँडे उसी दिलदार की सूरत हर इक आवाज़ जैसे साहब-ए-आवाज़ की मूरत समाअ'त पर नज़र पर सोच पर आसेब छाया है हर आहट पर तमन्ना पूछती है कौन आया है