कितनी अब बे-वक़'अत है नाम तक नया हो जब देखने में मा'मूली हिंदसा बदलता है तब सभी गुज़िश्ता पल पल में हों बे-मा'नी से साल के बदलने की एक ये अलामत है क्या कोई अलामत से दिल उजाल सकता है कोई नाम नफ़रत की जड़ निकाल सकता है जो अगर हो ऐसा तो ये ज़मीं ही जन्नत है दिल पे हाथ रख कर तुम पल-दो-पल ज़रा सोचो वक़्त का तक़ाज़ा है ज़ीस्त की ज़रूरत है