दिल-ए-मायूस में है तेरी याद जैसे वीराना में हो गंज-ए-निहाँ जैसे मायूसियों की ज़ुल्मत में इक शुआ-ए-उमीद हो लर्ज़ां जैसे ख़ामोशियों में सहरा की हो सदा-ए-ख़िराम-ए-जू-ए-रवाँ जैसे आरिफ़ के दिल में नूर-ए-ख़ुदा जैसे आशिक़ के सीने में अरमाँ जैसे बीमार को नवेद-ए-मसीह जैसे हातिम को मुज़्दा-ए-मेहमाँ जैसे नाज़ुक सी एक कश्ती हो दरमियान-ए-कशाकश-ए-तूफ़ाँ जैसे टूटे हुए खंडर में हों बाक़ी पिछली इमारतों के निशाँ हों चमन में बचे हुए जैसे मौसम-ए-गुल के कुछ गुल ओ रैहाँ जैसे चिंगारी ज़ेर-ए-ख़ाकिस्तर जैसे इक शो'ला-ए-तह-ए-दामाँ है तिरी याद ज़िंदगी मेरी इस को दे कर न लूँ मैं बाग़-ए-जिनाँ कभी ज़ाहिर है दिल की धड़कन से कभी ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ में है पिन्हाँ दर्द बन कर कभी है दिल में मुक़ीम कभी आँखों से अश्क बन के रवाँ हों ग़रज़ तेरी याद से ऐ दोस्त हश्र-बर्दोश ख़ुल्द दर-दामाँ