ग्रीष्म की दिल-फ़रेब रात्रि क्या होड़ लगा कर खिले हैं अमलतास और मधु-मालती रंग और सुगंध आज ढो रहे हैं तुम्हारी यादों की पालकी इस सड़क से इतनी बार गुज़रा हूँ कि आहट को पहचानने लगे हैं कुत्ते मुझे अपने इतने क़रीब देख कर भी इन में कोई हरकत कोई सुगबुगाहट नहीं ग़ालिबन अब इन्हें भी मुझ से कोई तवक़्क़ो कोई राह नहीं रही बहुत सघन है तुम्हारी प्रतीक्षा मेरा विकल्प आवारगी