ऐ बाद-ए-सुब्ह-गाही दिल की कली खिला दे वीराना मेरे दिल का रश्क-ए-चमन बना दे उस बज़्म-ए-जाँ-फ़ज़ा का नज़्ज़ारा फिर दिखा दे गुलज़ार-ए-आरज़ू में फिर ताज़ा गुल खिला दे ये कार-ज़ार-ए-हस्ती है रंज-ओ-ग़म की बस्ती फिर याद-ए-बज़्म-ए-जम में इक जाम-ए-जम पिला दे अब शाम-ए-ज़िंदगी की ज़ुल्मत है छाने वाली वो सुब्ह-ए-दिल-कुशा का नज़्ज़ारा फिर दिखा दे पस्ती में पा-ब-गिल है उम्र-ए-रवाँ का दरिया फिर ऊँची वादियों के मंज़र उसे दिखा दे वो अहद-ए-शादमानी वो इत्र-ए-ज़िंदगानी ऐ दौर-ए-आसमानी वापस कहीं से लादे ऐ बाग़बाँ हो तुझ को तख़्त-ए-चमन मुबारक मुझ को वो हम-नवा दे वो मेरा घोंसला दे किन हसरतों से 'नाज़िर' उस अंजुमन से निकले मेला सा लग रहा है जब हम चमन से निकले अहवाल-ए-बज़्म-ए-गुलशन ऐ नामा-बर सुनाना वो दास्ताँ है दिलकश रंगीं है वो फ़साना उस बज़्म-ए-दिल-कुशा में उल्फ़त की उस फ़ज़ा में तारों की रौशनी में यारों का मिल के गाना कानों में रच रही है कोयल की कूक अब तक 'नाज़िर' का है वज़ीफ़ा उस धुन में गुनगुनाना कॉलेज की सरज़मीं थी या नक़्श-ए-दिल-नशीं थी दिल से ख़याल उस का मुमकिन नहीं भुलाना दरिया में मिल के जैसे हों नद्दियाँ हम-आग़ोश बेगाना कल जो आया वो आज था यगाना बहर-ए-तवाफ़ जाना पीर-ए-मुग़ाँ के दर पर और उस की इक निगह से सरमस्त हो के आना उस चश्म-ए-मस्त में थी ये तुर्फ़ा इक करामत फिरती वो जिस तरफ़ को फिरता उधर ज़माना ऐ वक़्त-ए-रफ़्ता आ जा फिर वो समाँ दिखा जा ऐसा भी क्या था जाना फिर लौट कर न आना ऐ नाख़ुदा भँवर से कश्ती मेरी बचा कर यारान-ए-आश्ना से बहर-ए-ख़ुदा मिलाना दर फ़स्ल-ए-गुल कि गुलशन नक़्श-ओ-निगार बंदो 'नाज़िर' ख़याल-ए-ख़ुद-रा और बज़्म-ए-यार बंदो