बहुत सँभाल के रक्खें हैं हम ने उन वक़्तों की यादें जो हमें मग़्मूम रखते थे जो अपने अपने वक़्तों में हम पर मुसल्लत रहे उन दिनों में मसरूफ़ियत के बावजूद हम ज़िंदगी को ऐसे देख रहे थे जैसे ख़ुद से कह रहे हों हम नहीं लड़ना चाहते उन के इन इरादों से जो हमें मलियामेट करना चाहते हैं हम जानते थे उन के इरादों के सामने हमारे इरादे उन का मुँह-तोड़ जवाब दे सकते हैं लेकिन हमारी ख़ामोशी ने उन को बढ़ावा दिया ये हमारे इर्द-गर्द उदासी का दायरा तंग करते रहे यहाँ तक कि हम इस उदासी के आदी हो गए लोग कहते हैं हम उस वक़्त हमेशा हालत-ए-जंग में नज़र आते थे झेले हुए दिनों को हम आज भी नहीं भूले बहुत सैंत कर रखी हैं हम ने उन वक़्तों की यादें अपने असासे में अपने पुराने संदूक़ में ये शायद जब हम पर कोई जुर्म आएद हो रहा हो ये हमारी हिमायत में पुराने संदूक़ से बाहर आ जाएँ