अचानक आज मुझ को रास्ते में मिल गया था वो तुम्हारा नाम लेता था मुझे कहने लगा, अंजुम ख़ुदा-लगती कहो, तुम ने भी इस मह-रू को देखा है तुम्हारी आँख भी तो हुस्न का इदराक रखती है तुम्हें भी आश्नाई है कि ख़द्द-ओ-ख़ाल किन किन ज़ावियों से हुस्न की तश्कील करते हैं तो क्या जो हाल है मेरा भला कुछ और होता था? मुझे तो उस पे मरना था मुझे तो ख़ुद को रोना था! मैं उस की बात सुन कर हँस दिया इस शख़्स ने उस शख़्स को किस आँख से देखा! मुझे तो यूँ लगा जैसे कोई दीवान-ए-ग़ालिब की मुनक़्क़श जिल्द की तारीफ़ करता हो