सदा आ रही है मरे दिल से पैहम कि होगा हर इक दुश्मन-ए-जाँ का सर ख़म नहीं है निज़ाम-ए-हलाकत में कुछ दम ज़रूरत है इंसान की अम्न-ए-आलम फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम सदा आ रही है मिरे दिल से पैहम न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे मुसावात के दीप घर घर जलेंगे सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे न होगी कभी ज़िंदगी वक़्फ़-ए-मातम फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम