ये भी अपनी ख़्वाहिश है By Nazm << काश ख़ुद-कलामी ख़ातून-ए-ख़ाना क... >> चाँदनी रात के आईने में तुम देखो जब अपनी सूरत हम भी देख सकें ये मंज़र यही तो अपनी ख़्वाहिश है फूल कहें जो सरगोशी में सारे भेद तुम्हारे तन के हम भी सुन पाएँ ये हिकायत ये भी अपनी ख़्वाहिश है Share on: