ये काग़ज़ की By Nazm << ज़ख़्मी सड़क वो क़ासिद मर चुका है >> ये काग़ज़ की दीवारें न मेरी पनाह-गाह हैं न तुम्हारी हाफ़िज़ा मेरा सफ़र तो ज़ेहन से ज़ेहन तक का है तुम अगर मुझे सोच सकते हो तो सोचो ये काग़ज़ की Share on: