ये क़ुर्बत ये फ़ासले By Nazm << अमीर ख़ुसरव सुब्ह-ए-नौ >> क़ुर्बतें इतनी कि इक जान है दो क़ालिब हैं दूरियाँ इतनी कि जैसे हों फ़लक और ज़मीं सामने रह के भी दोनों कभी मिल सकते नहीं Share on: