ये रात होगी तवील कितनी बुलंद होगी फ़सील कितनी ये ख़ौफ़-ओ-दहशत का दौर-दौरा रहेगा कब तक गली गली कूचा कूचा पहरा रहेगा कब तक ये आग जंगल की आग कब तक फ़लक से बरसेगी राख कब तक सितारे टूटेंगे और कब तक यूँ आसमाँ से परिंद रूठेंगे आशियाँ से ये फूल-पत्ते हवाएँ शबनम करेंगे किस किस का और मातम सियाह पुर-हौल आँधियों का ये मौज मेला रहेगा कब तक मुक़ाबले में शजर अकेला कड़कती बेचैन बिजलियों का ज़मीं की जानिब सफ़र कभी तो तमाम होगा फिरेंगे धरती के दिन यक़ीनन कभी तो बंदों पे लुत्फ़-ए-रब्ब-ए-अनाम होगा हसीन तितली के नर्म-ओ-नाज़ुक परों की जुम्बिश धनक के ख़ुश-दीदा रंग हर-सू बिखेर देगी कभी तो बाद-ए-नसीम ख़ुश्बू बिखेर देगी मुझे यक़ीं है कि कल के सूरज की मुस्कुराहट ज़मीं के महरूम बासियों को नई सहर का पयाम देगी लबों को इज़्न-ए-कलाम देगी मुझे यक़ीं है वो दिन भी आएगा जब उरूस-ए-चमन के क़दमों की धीमी आहट सुनाई देगी बहार लम्हों की गुनगुनाहट सुनाई देगी तुयूर चहकेंगे बालियों पर गुलाब महकेंगे डालियों पर कभी तो देखेगा सर उठा कर चमन में नन्हा सा कोई पौदा कभी तो झाँकेगा बादलों का हटा के घुँघट कहीं ये छोटा सा इक सितारा कभी तो निकलेगा चाँद पूरा ये घर ये आँगन चमक उठेगा हर एक चेहरा दमक उठेगा मुझे यक़ीं है कभी तो उतरेगा आसमाँ से कोई फ़रिश्ता पढ़ेगा चेहरे पे जो लिखा है सुनेगा वो भी जो हम ने अब तक नहीं कहा है सियाह रातों की तीरगी का तवील बे-कैफ़ ज़िंदगी का कोई तो आ कर हिसाब देगा हमारी आँखों में ख़ार बन कर जो चुभ रहे हैं सवाल उन का जवाब देगा