चलो यूँ ही सही तुम सब दरीचे बंद कर दो वो हवाएँ रोक दो जो ख़ला सीने का भरने के लिए आती हैं साँसें तुम्हारी साथ लाती हैं तो ''लू'' ऐसे समय मेरी रगों में ख़ून के बदले वो पानी है जो अरमाँ साध लेने वाले पेड़ों का मुक़द्दर है मिरे तूफ़ान की मौजें किसी बर्फ़ीले चोटी की वो तहरीरें हैं जिन को अब फ़क़त ऐसे फ़रिश्ते पढ़ सकेंगे जो कभी बद-बख़्त धरती पर उतरते ही नहीं चलो यूँही सही तुम जो भी चाहो जिस तरह चाहो वही होगा मैं इक गिर्दाब की मानिंद वापस लौटता हूँ उस समुंदर में कि जिस की तह में जा कर सब ख़ज़ाने डूब जाते हैं