घर से जा कर रोज़ सवेरे मकतब आ कर रोज़ सवेरे जो नग़्मे गाते हो अक्सर गा कर लहराते हो अक्सर है तो वो भी हम्द ख़ुदा की हम्द ख़ुदा-ए-अर्ज़-ओ-समा की लेकिन वो तारीफ़ भी क्या है सिर्फ़ ज़बाँ पर जिस की सदा है मा'नी हैं ये हम्द ख़ुदा के हम्द ख़ुदा-ए-अर्ज़-ओ-समा के रब के नाम में है जो नेकी वो हम में पैदा हो नेकी नाम हों रब के जिस से रौशन काम हों रब के जिस से रौशन करता है वो एहसाँ सब पर क्या आक़िल क्या नादाँ सब पर हम भी डालें ख़ू-ए-एहसाँ हम में भी हो बू-ए-एहसाँ राजा या कंगाल हो कोई गोरा हो या लाल हो कोई उस की नज़र में सभी बराबर उस के घर में सभी बराबर हम भी बराबर जानें सब को हम भी बराबर मानें सब को रो'ब न मानें धन दौलत का फ़र्क़ न जानें धन दौलत का मज़लूमों का हामी है वो मासूमों का हामी है वो हम भी लोगों के काम आएँ उन के हर दुख को अपनाएँ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई अम्मी अब्बा बहना भाई ये तो हैं सब नाम हमारे देखता है वो काम हमारे अच्छा काम है उस को प्यारा नेक अंजाम है उस को प्यारा हम भी सब का रुत्बा मानें हम भी सब को अच्छा जानें जिन लोगों के काम हैं अच्छे कामों के अंजाम हैं अच्छे बुरे भले से वाक़िफ़ है वो खुले ढके से वाक़िफ़ है वो हम भी अपना इल्म बढ़ाएँ क़ुदरत के राज़ों को पाएँ ज़ालिम से है बैर ख़ुदा को परमेश्वर को अन-दाता को बस फिर हम पर फ़र्ज़ यही है 'ज़ेब' की तुम से अर्ज़ यही है अपनों पर क्या बेगानों पर रहम करो सब इंसानों पर अच्छे इंसाँ बन के दिखा दो हम्द के मा'नी सब को बता दो