ज़िक्र-ए-'आरज़ू'

फिर लहू बहने लगा आँखों से क्या फिर छिड़ गया
हल्क़ा-ए-अहबाब में ज़िक्र-ए-विसाल-ए-'आरज़ू'

आलम-ए-शेर-ओ-सुख़न में आज हासिल है किसे
क़ुदरत-ए-तख़्लीक़-ओ-परवाज़-ए-ख़याल-ए-'आरज़ू'

अल्लह-अल्लह किस वुफ़ूर-ए-शौक़ से अहल-ए-शुऊ'र
देखते हैं हुस्न-ए-मा'नी में जमाल-ए-'आरज़ू'

आज भी है शहसवारान-ए-अदब के वास्ते
मशअ'ल-ए-राह-ए-सुख़न हुस्न-ए-कमाल-ए-'आरज़ू'

'आरज़ू' ज़िंदा नहीं पर ज़िंदा-ए-जावेद है
गुलशन-ए-शेर-ओ-तग़ज़्ज़ुल में निहाल-ए-'आरज़ू'

करवटें बदला करेगा आसमाँ लाखों बरस
जब कहीं मुमकिन है पैदा हो मिसाल-ए-आरज़ू

ज़ेब-ए-दीवाँ ही नहीं हर-क़ाश-ए-दिल पर नक़्श है
हर्फ़-ए-क़ौल-ए-'आरज़ू' लफ़्ज़-ए-मक़ाल-ए-'आरज़ू'

फ़िक्र मेरी ना-रसा है इल्म मेरा ना-तमाम
मुझ से मुमकिन ही नहीं शरह-ए-कमाल-ए-'आरज़ू'

सोहबत-ए-हूर-ओ-मलक ऐ 'अश्क' ख़ुश आए न क्यों
मिलते-जुलते थे फ़रिश्तों से ख़िसाल-ए-'आरज़ू'


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