ज़ुल्मत-ए-अना By Nazm << सहारा वक़्त के क़दम >> ज़ेहन पर छाई है बे-सूद ख़यालों की घटा फिक्र-ओ-एहसास का हर गोशा है महरूम-ए-ज़िया चश्म-ए-इदराक से पोशीदा है राज़-ए-फ़ितरत क़ल्ब-ए-वीराँ पे मुसल्लत है अना की ज़ुल्मत नूर-ए-इरफ़ाँ जो कभी दिल में नज़र आता है ख़ुद-परस्ती के अंधेरे में समा जाता है Share on: