वक़्त के क़दम By Nazm << ज़ुल्मत-ए-अना तस्कीन के हीरे >> जिन के फेरे थे खंडर में इन हवाओं ने कहा वक़्त की रफ़्तार का अंजाम वीरानी है क्यों इस पे बोली गर्द हैं इस मसअले के रुख़ कई इक यही पहलू भला वज्ह-ए-परेशानी है क्यों मेरे बारे में भी सोचो वक़्त ठहरे या चले क़ाएम-ओ-दाएम हमेशा मेरी यकसानी है क्यों Share on: