रातों को दुख सहती हूँ मैं दिन में ग़ाफ़िल रहती हूँ मैं रौशन मुझ से डेरा डेरा देख के मुझ को भागे अंधेरा महफ़िल में जल जाती हूँ मैं शब भर में ढल जाती हूँ मैं भीग रहा है दामन मेरा जलने लगा है तन-मन मेरा मुझ से पतंगे डरते हैं फिर भी वो मुझ पर मरते हैं पास वो मेरे जब आते हैं मौत का लुक़्मा बन जाते हैं 'आदिल' मेरा नाम बताओ इल्म की शमएँ हर सू जलाओ