आज तंहाई किसी हमदम-ए-देरीं की तरह By Qita << बुझ गया तेरी मोहब्बत का श... इक बे-वफ़ा से अहद-ए-वफ़ा क... >> आज तंहाई किसी हमदम-ए-देरीं की तरह करने आई है मिरी साक़ी-गरी शाम ढले मुंतज़िर बैठे हैं हम दिनों कि महताब उभरे और तिरा अक्स झलकने लगे हर साए-तले Share on: