नई तहज़ीब में भी मज़हबी ता'लीम शामिल है Admin अकबर इलाहबादी की शायरी, Qita << ख़ूब है इक शाइ'र-ए-शी... ख़्वाब है और उन्हें पाने ... >> नई तहज़ीब में भी मज़हबी ता'लीम शामिल है मगर यूँही कि गोया आब-ए-ज़मज़म मय में दाख़िल है कहाँ तक दाद दूँ तेरी बलाग़त की मैं ऐ 'अकबर' ये तेरा एक मतला लाख मज़मूनों का हासिल है Share on: