तअ'ज्जुब से कहने लगे बाबू साहब गवर्नमेंट सय्यद पे क्यों मेहरबाँ है उसे क्यों हुई इस क़दर कामयाबी कि हर बज़्म में बस यही दास्ताँ है कभी लाट साहब हैं मेहमान उस के कभी लाट साहब का वो मेहमाँ है नहीं है हमारे बराबर वो हरगिज़ दिया हम ने हर सेग़े का इम्तिहाँ है वो अंग्रेज़ी से कुछ भी वाक़िफ़ नहीं है यहाँ जितनी इंग्लिश है सब बर-ज़बाँ है कहा हँस के अकबर ने ऐ बाबू साहब सुनो मुझ से जो रम्ज़ इस में नहीं है नहीं है तुम्हें कुछ भी सय्यद से निस्बत तुम अंग्रेज़ी-दाँ हो वो अंग्रेज़-दाँ है