बातें करने में फूल झड़ते हैं By निगाह, अदा, Qita << बहुत से इशरत-ए-नौ-रोज़-ओ-... अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ... >> बातें करने में फूल झड़ते हैं बर्क़ गिरती है मुस्कुराने में नज़रें! जैसे फ़राख़-दिल साक़ी ख़ुम लुंढाए शराब-ख़ाने में Share on: