दश्त में तपते ग़ुबारों से तयम्मुम कर के Admin शायरी मेरी कलम से, Qita << दिखा न ख़्वाब हसीं ऐ नसीब... दर-ब-दर भटका करेंगे रास्त... >> दश्त में तपते ग़ुबारों से तयम्मुम कर के इश्क़ करता है जो सज्दे तो ग़ज़ल होती है यूँ ही लफ़्ज़ों में हरारत नहीं आती 'अफ़ज़ल' जब क़लम ख़ून में डूबे तो ग़ज़ल होती है Share on: