दावर-ए-हश्र मुझे तेरी क़सम By Qita << न छेड़ो मुझ से बातें ख़ैर... चाँद निकला है सर-ए-बाम लब... >> दावर-ए-हश्र मुझे तेरी क़सम उम्र-भर मैं ने इबादत की है तू मिरा नामा-ए-आमाल तो देख मैं ने इंसाँ से मोहब्बत की है Share on: