दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया By Qita << दोपहर होने को है सन्ना गय... जो चोट भी लगी है वो पहली ... >> दिल टिक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया कहने को तर्क ले कर इक स्वाँग याँ बनाया दरयोज़ा करते गुज़री गलियों में उम्र अपनी दरवेश कब हुए हम तकिया कहाँ बनाया Share on: