दिल-ए-वीराँ को अब की बार शायद Admin हिंदी कविता ग़ज़ल शायरी On Facebook, Qita << मुझ को इन अर्ज़ी ख़ुदाओं ... दिल से मजबूर आप से बेज़ार >> दिल-ए-वीराँ को अब की बार शायद ग़मों ने अपना मस्कन कर लिया है तिरे वहशी ने अब तो अपने हक़ में ज़माने भर को दुश्मन कर लिया है ग़ज़ल ज़ालिम से हम भी हार बैठे इसी को अपना अब फ़न कर लिया है Share on: