दूर घाटी से सर उठा के शफ़क़ By Qita << हज़ार दर्द शब-ए-आरज़ू की ... ले के दिल दर्द पाएदार दिय... >> दूर घाटी से सर उठा के शफ़क़ ज़र्रे ज़र्रे पे मुस्कुराती है जैसे चुप-चाप कोई शोख़ कली छुप के सब्ज़े पे लेट जाती है Share on: