रफ़ीक़-ए-राह थी मंज़िल हर इक तलाश के ब'अद By Qita << मौत को जानते हैं अस्ल-ए-ह... ज़िंदगी तू ने कहानी दे दी >> रफ़ीक़-ए-राह थी मंज़िल हर इक तलाश के ब'अद छुटा ये साथ तो रह की तलाश भी न रही मलूल था दिल-ए-आईना हर ख़राश के ब'अद जो पाश पाश हुआ इक ख़राश भी न रही Share on: