गिरानी का असर By Qita << वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-गुलज़ार ... मय-कशी का शबाब बाक़ी है >> हुई जो दाल गिराँ और सब्ज़ियाँ महँगी किचन में जा के भला क्या किचन-नवाज़ करे मुआमलात-ए-मोहब्बत का अब ये आलम है मैं प्यार प्यार करूँ और वो प्याज़ प्याज़ करे Share on: