गिरती हुई बूँदें हैं कि पारे की लकीरें By Qita << चाँदनी रात की ख़मोशी में ताज जब मर्द के माथे पे नज... >> गिरती हुई बूँदें हैं कि पारे की लकीरें बादल है कि बस्ती पे गजर-दम का धुआँ है मग़्मूम पपीहा है कि भटका हुआ शाएर जो पूछता फिरता है कहाँ है तू कहाँ है Share on: