जा रहा था हरम को मैं लेकिन By Qita << इक नई नज़्म कह रहा हूँ मै... गरेबान >> जा रहा था हरम को मैं लेकिन रास्ते में ब-ख़ूबी-ए-तक़दीर इक मक़ाम ऐसा आ गया जिस ने डाल दी मेरे पाँव में ज़ंजीर Share on: