ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है By महरूमी, बेकसी, Qita << उन के क्या रंग थे अब याद ... तू ने ख़ुद तल्ख़ बना रक्ख... >> ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है मौत आँखें चुराए जाती है थक के बैठा हूँ इक दोराहे पर दोपहर सर पे आए जाती है Share on: