जो पैरहन में कोई तार मोहतसिब से बचा By Qita << हम फ़क़ीरों की सूरतों पे ... हो कर दुनिया से बेगाना >> जो पैरहन में कोई तार मोहतसिब से बचा दराज़-दस्ति-ए-पीर-ए-मुग़ाँ की नज़्र हुआ अगर जराहत-ए-क़ातिल से बख़्शवा लाए तो दिल सियासत-ए-चारा-गिराँ की नज़्र हुआ Share on: