किसी की फिर मिरे दिल पर हुकूमत होती जाती है By Qita << मुमकिन है फ़ज़ाओं से ख़ला... ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू य... >> किसी की फिर मिरे दिल पर हुकूमत होती जाती है इलाही कैसी मजबूरी की सूरत होती जाती है मज़ा देने लगी ऐ 'सोज़' अब बे-ताबी-ए-दिल भी तबीअत महरम-ए-राज़-ए-मोहब्बत होती जाती है Share on: