मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ By Qita << उस को किरनों ने दी है ताब... सो गए अंजुम-ए-शब याद न आ >> मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ फ़ाक़ा-मस्ती मुदाम करता हूँ कोई नाकाम यूँ रहे कब तक मैं भी अब एक काम करता हूँ Share on: