मय-ख़ानों की रौनक़ हैं कभी ख़ानक़हों की By Qita << जाम-ए-इशरत का एक घोंट नही... हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ा... >> मय-ख़ानों की रौनक़ हैं कभी ख़ानक़हों की अपना ली हवस वालों ने जो रस्म चली है दिल-दारि-ए-वाइज़ को हमीं बाक़ी हैं वर्ना अब शहर में हर रिंद-ए-ख़राबात वली है Share on: