मुत्तहिद हो के उठे ज़ुल्म के क़दमों से अवाम By उम्मीद, हौसला, Qita << दूर घाटी से सर उठा के शफ़... ले के दिल दर्द पाएदार दिय... >> मुत्तहिद हो के उठे ज़ुल्म के क़दमों से अवाम सारे गुम-गश्ता अज़ीज़ान-ए-जहाँ मिल ही गए लाख गुलशन में बिछाए थे ख़िज़ाँ ने काँटे क़दम-ए-बाद-ए-बहार आए तो गुल खिल ही गए Share on: