न समझा गया अब्र क्या देख कर By Qita << रात है बरसात है मस्जिद मे... कितनी मासूम हैं तिरी आँखे... >> न समझा गया अब्र क्या देख कर हुआ था मिरी चश्म-ए-तर की तरफ़ टपकता है पलकों से ख़ूँ मुत्तसिल नहीं देखते हम जिगर की तरफ़ Share on: