न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है By Qita << गाएँ डकराती हुई पगडंडियों... हर तंज़ किया जाए हर इक तअ... >> न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है तो क्यूँ दिलों में जा-गुज़ीं वो बिन्त-ए-सद-अफ़ाफ़ है 'मजाज़' आह क्या करे वो दोस्त भी हरीफ़ भी फ़लक तो अब भी नर्म है ज़मीन ही ख़िलाफ़ है Share on: