नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है By Qita << यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलत... मैं ने अपना ही भिगोया है ... >> नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है कश्मकश ऐन कामयाबी है गर किनारा नहीं मुक़द्दर में क़स्र-ए-दरिया में क्या ख़राबी है Share on: