पर्दा-ए-माज़ी पे सूरत जो कोई उभरी है Admin Qita << प्यार कमज़ोर हो तो हिज्र ... वाह रे सय्यद-ए-पाकीज़ा-गु... >> पर्दा-ए-माज़ी पे सूरत जो कोई उभरी है ज़ेहन में घूम गए हैं मिरे अफ़्साने कई हूँ में हैरान ये क्यूँ-कर न खुला राज़ अब तक है क़रीं दल के ब-ज़ाहिर जो थे बेगाने कई Share on: