साहिल पे इक थके हुए जोगी की बंसरी By Qita << यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर मौत को जानते हैं अस्ल-ए-ह... >> साहिल पे इक थके हुए जोगी की बंसरी तल्क़ीन कर रही है किनारा है ज़िंदगी तूफ़ान में सफ़ीना-ए-हस्ती को छोड़ कर मल्लाह गा रहा है कि दरिया है ज़िंदगी Share on: