साज़ पर मश्क़ कर के साज़-नवाज़ Admin Qita << शबाब जा चक्का लेकिन ख़ुमा... क़स्र उम्मीदों के कुछ हम ... >> साज़ पर मश्क़ कर के साज़-नवाज़ फ़न में पाता है पुख़्तगी जैसे सीख लेता बशर है जीना भी बढ़ती जाती है ज़िंदगी जैसे Share on: