शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार By Qita << सुर्ख़ होंटों की ताज़गी क... सुना है चाह का दावा तुम्ह... >> शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार झुटपुटे में ज़र्रा ज़र्रा आँख झपकाता हुआ जंगलों में मुंतज़िर ख़ामोशियाँ छाई हुई जैसे कोई थम गया हो रागनी गाता हुआ Share on: