सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में By Qita << मैं ने अपना ही भिगोया है ... फिर हश्र के सामाँ हुए ऐवा... >> सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में मेरे जज़्बात की तस्कीन नहीं हो सकती ज़िंदगी रोज़-ए-अज़ल से है छलकता हुआ ज़हर ज़िंदगी लाएक़-ए-तहसीन नहीं हो सकती Share on: