ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री By Qita << यास में बेदारी-ए-एहसास का... सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-... >> ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री पंद-गो यूँही न कर अब ख़लल औक़ात के बीच ज़िंदगी किस के भरोसे पे मोहब्बत मैं करूँ एक दिल ग़म-ज़दा है सो भी है आफ़ात के बीच Share on: