तिरी ज़ुल्फ़ें हैं कि सावन की घटा छाई है By हुस्न, Qita << वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलत... >> तिरी ज़ुल्फ़ें हैं कि सावन की घटा छाई है तेरे आरिज़ हैं कि फूलों को हँसी आई है ये तिरा जिस्म है या सुब्ह की शहज़ादी है ज़ुल्मत-ए-शब से उलझती हुई अंगड़ाई है Share on: