यूँ मिरे ज़ेहन में लर्ज़ां है तिरा अक्स-ए-जमील By Qita << वक़्फ़-ए-हिरमान-ओ-यास रहता ... तुम्हारे हुस्न को मेरी नज... >> यूँ मिरे ज़ेहन में लर्ज़ां है तिरा अक्स-ए-जमील दिल-ए-मायूस में यूँ गाहे उभरती है आस टिमटिमाता है वो नौ-ख़ेज़ सितारा जैसे दूर मस्जिद के उस उभरे हुए मीनार के पास Share on: