अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया By Rubaai << बेदारी का इक दौर नया आता ... कहते हैं 'रज़ा' क... >> अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया साक़ी ने भरा साग़र-ए-मह छलकाया कुछ सोच के कुछ देर तअम्मुल कर के उस ने भी ज़रा पर्दा-ए-रुख़ सरकाया Share on: