एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है By Rubaai << आलिम ओ जाहिल में क्या फ़र... अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दर... >> एहसास में बे-ताबीे-ए-जाँ रख दी है इज़हार में तासीर-ए-बयाँ रख दी है ख़ल्लाक़-ए-मआ'नी ये करम है तेरा अल्फ़ाज़ के मुँह में भी ज़बाँ रख दी है Share on: